यूनेस्को कार्यशाला ने सामुदायिक रेडियो को ‘पुरुषत्व’ की नई परिभाषा गढ़ने का आह्वान किया
#TransformingMENtalities विषय पर आयोजित कार्यशाला में देशभर के 9 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों ने लिया भाग
नई दिल्ली : “लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने में पुरुष और किशोर कैसे सहयोगी बन सकते हैं?” इसी सवाल को केंद्र में रखते हुए यूनेस्को के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय, नई दिल्ली और हैदराबाद विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग स्थित यूनेस्को चेयर ऑन कम्युनिटी मीडिया द्वारा एक विशेष कार्यशाला ‘Transforming MENtalities: Engaging Men and Boys through Community Radio’ का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में पुरुषत्व (Masculinities) की पारंपरिक समझ को चुनौती देते हुए, सामुदायिक रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में गहराई से संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से चार-एपिसोड की एक रेडियो श्रृंखला विकसित करने पर जोर दिया गया।

‘पुरुषत्व’ को समझने का प्रयास
यूनेस्को की नेशनल प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. श्रद्धा चिक्केरूर ने कहा, “लैंगिक विमर्श अक्सर महिलाओं तक सीमित रह जाता है, लेकिन अब वक्त है पुरुषों और अन्य लैंगिक पहचानों पर भी बात करने का।”
सत्र ‘Gender and Masculinity’ का नेतृत्व सपना केडिया (ICRW) ने किया, जिसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार पितृसत्ता पुरुषों को विशेषाधिकार तो देती है, लेकिन उन पर कई प्रकार के सामाजिक दबाव भी डालती है। उन्होंने पितृसत्ता के तीन प्रमुख स्तंभों—भूमि अधिकार, संतानोत्पत्ति और उत्पादन—का ज़िक्र किया।
पिता-पुत्र के संबंधों से बदलेगी सोच
डॉ. रवि वर्मा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, ICRW, ने सत्र ‘Masculinities in our Daily Lives’ में बताया कि पुरुषत्व को एक बहुआयामी दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि “पुरुषों की सोच को बदलने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ‘पिता’ के रूप में निभाई जा सकती है।”
सामुदायिक रेडियो से बदलाव की पहल
‘From Idea to Episode’ सत्र में प्रतिभागियों ने स्थानीय कहानियों, पात्रों और संदेशों पर चर्चा की। महेश जगताप, प्रोड्यूसर, विद्यावाणी 107.4 FM, ने आत्मचिंतन करते हुए कहा, “मेरा बेटा मुझे इसलिए अधिक सम्मान देता है क्योंकि मैं कमाता हूँ, यह सोच मुझे गलत लगती है।”

प्रतिभागी रेडियो स्टेशन
कार्यशाला में देशभर के 9 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के 17 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें शामिल हैं:
- नित्यानंद जनवाणी (पश्चिम बंगाल)
- रेडियो मट्टोली (केरल)
- रेडियो मधुबन (राजस्थान)
- वक्त की आवाज़ (उत्तर प्रदेश)
- रूड़ी नो रेडियो (गुजरात)
- वायालगा वनोली (तमिलनाडु)
- गुरुग्राम की आवाज़ (हरियाणा)
- रेडियो बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश)
- विद्यावाणी (महाराष्ट्र)
कार्यशाला का समन्वय प्रो. विनोद पवाराला, प्रो. कंचन के. मलिक, और प्रो. वासुकी बेलावड़ी ने किया।