बीएचयू में ‘काशी वैभव’ विषय पर विद्वानों और शोधार्थियों ने किया मंथन

वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित “काशी वैभव – एक ऐतिहासिक विमर्श” विषयक संगोष्ठी के दूसरे दिन विद्वानों और शोधार्थियों ने काशी के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की। इस अवसर पर कोलकाता के सेरामपुर कॉलेज की इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रो. मौमी बनर्जी ने अपने शोधपत्र के माध्यम से बनारस और बंगाल के सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल से ही पवित्र नगरी काशी ने न केवल भारत बल्कि विश्वभर के लोगों के मन-मस्तिष्क में विशेष स्थान बनाया है। बनारस की छवि बंगाली समुदाय की सांस्कृतिक कल्पना और प्रथाओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र रही है। औपनिवेशिक काल के प्रारंभ में बंगाल से आकर काशी में स्थायी रूप से बसने वाले बंगाली समुदाय ने काशी के सांस्कृतिक लोकाचार को आत्मसात किया और अपने बंगालीपन को यहां के वातावरण में घुला दिया। उन्होंने बताया कि काशी का यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, खासतौर पर औपनिवेशिक समय में, हिंदू और गैर-हिंदू निवासियों की राष्ट्रीय पहचान को और मजबूत करने में सहायक बना। आजादी के बाद भी काशी में बंगालियों की बहुआयामी सांस्कृतिक पहचान जारी रही, जिसे सत्यजीत रे और ऋतुपर्णा घोष जैसे फिल्मकारों ने अपने सिनेमा के माध्यम से सुंदरता से उजागर किया।

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Scholars and researchers brainstormed on the subject of 'Kashi Vaibhav' at BHU

संगोष्ठी में प्रो नंदिता बनर्जी ने ‘भारतीय सिनेमा और बनारस’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है और काशी के समाज एवं संस्कृति को प्रतिबिंबित करने में इसका विशेष योगदान रहा है। ‘मसान’ और ‘धर्म’ जैसी फिल्मों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि ये फिल्में काशी की सामाजिक और सांस्कृतिक छवि को बखूबी दर्शाती हैं। इसके अलावा, बनस्थली विद्यापीठ की इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनीता कुमारी ने अपने शोधपत्र के माध्यम से बताया कि काशी की सांस्कृतिक निरंतरता गंगा की तरह प्रवाहमान है। 1850 से 1905 के बीच हुए औद्योगीकरण ने काशी के आधुनिक विकास को प्रभावित किया। डफरिन पुल और राजघाट के उत्खनन क्षेत्र ने प्राचीनता और नवीनता का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र से प्रेमचंद तक की साहित्यिक परंपरा को काशी के वैभव और विरासत से जोड़ते हुए कहा कि पं. मदनमोहन मालवीय ने इस शाश्वत सत्य को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया।

संगोष्ठी के दौरान बीएचयू के इतिहास विभाग की प्रो. अनुराधा सिंह ने काशी की भौगोलिक विशेषताओं पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि काशी की भौगोलिक संरचना इस नगरी को पवित्रता और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में विश्व में अद्वितीय बनाती है। वहीं शिमला विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. विवेकानंद तिवारी ने काशी के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पक्षों से सबको अवगत कराया। इसके अलावे देश के भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालयों से उपस्थित शोधार्थियों ने भी अपने शोधपत्र को पढ़कर नवीन अनुसंधान से परिचय कराया। संयोजक डॉ सत्यपाल यादव और डाॅ सीमा मिश्रा ने बताया कि देशभर से जुटे विद्वान काशी के विविध पहलुओं पर मंथन कर रहे हैं। रविवार को संगोष्ठी के अंतिम दिन विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे,जिसमें सारस्वत परिषद द्वारा विविध क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाएगा।

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