जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय मे विश्व फोटोग्राफी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
दर्शन से जीवन को श्रेष्ठ, संयमित और शुचितापूर्ण बनाया जा सकता है – प्रो. व्यास
राजस्थान /लाडनूं : जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग द्वारा ‘विश्व दार्शनिक दिवस’ पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रो. लक्ष्मीकांत व्यास, जो कि राजस्थानी भाषा एवं साहित्य शोध केंद्र के निदेशक हैं, ने अपने व्याख्यान में दर्शन के महत्व पर विस्तार से चर्चा की।
प्रो. व्यास ने कहा, “दर्शन केवल देखना नहीं, बल्कि यह एक गहरी और बहुपक्षीय प्रक्रिया है, जो जीवन के विविध पहलुओं को समझने में मदद करती है। सही दर्शन वह है, जिसमें आत्मचक्षु से हम किसी वस्तु या स्थिति को समझ पाते हैं। यह ज्ञान की प्राप्ति के साथ-साथ जीवन के कर्मों में शुद्धता और संयम लाने का कार्य करता है।”उन्होंने प्राचीन भारतीय दर्शन और पाश्चात्य दर्शन के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए गीता के दर्शन का उदाहरण दिया। गीता में वर्णित ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग के माध्यम से जीवन को श्रेष्ठ और संयमित बनाने की प्रक्रिया पर जोर दिया। प्रो. व्यास ने आगे कहा कि दर्शन जीवन को शुद्ध बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें अच्छे नागरिक बनने की दिशा में मार्गदर्शन देता है और हमारे कर्मों को शुद्धता की ओर अग्रसर करता है।
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. बलबीर सिंह, विभागाध्यक्ष ने अतिथियों का स्वागत किया और उनका परिचय प्रस्तुत किया। अंत में, डॉ. रविंद्र सिंह राठौड़ ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. लिपि जैन ने किया और विश्व दार्शनिक दिवस के ऐतिहासिक महत्व को बताया।
इस अवसर पर डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज, इर्या जैन और अन्य संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।