वैश्विक अनुसंधान सहयोग को मिलेगी नई दिशा: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और आरआईएस के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर

कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (RIS) के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे वैश्विक अनुसंधान सहयोग और शैक्षणिक सहभागिता को नई दिशा मिलने की उम्मीद है। यह समझौता नई दिल्ली में 3–4 जून तक आयोजित “वैश्विक दक्षिण एवं त्रिकोणीय सहयोग के उभरते पहलुओं पर सम्मेलन” के उद्घाटन सत्र के दौरान हुआ।

इस अवसर पर कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और आरआईएस के बीच लंबे समय से सहयोग रहा है, जो अब औपचारिक रूप से और अधिक गहराएगा। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को पूरी तरह से लागू करने वाला देश का पहला संस्थान बनने का गौरव प्राप्त किया है। साथ ही, विश्वविद्यालय में पेटेंट पंजीकरण और उद्यमिता नवाचार को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्रो. सचदेवा ने घोषणा की कि इस समझौते के अंतर्गत संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएं, विद्यार्थियों की इंटर्नशिप, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, और कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी। विश्वविद्यालय शीघ्र ही भारतीय महासागर क्षेत्रीय संगठन (IORA) की विश्वविद्यालय नेटवर्क (UMIOR) का सदस्य बनने की दिशा में भी कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह पहल वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच साझा विकास, शक्तिशाली भागीदारी, और सहयोग को बढ़ावा देगी।

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सम्मेलन के दौरान भारत की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संबंधों को मजबूती देने के उद्देश्य से 21 प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ RIS ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। यह पहल 2023 में भारत की G-20 अध्यक्षता के दौरान आयोजित यूनिवर्सिटी कनेक्ट हब प्रोग्राम की सफलता को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

समारोह में विशेष रूप से पराग्वे के राष्ट्रपति महामहिम श्री सैंटियागो पेना पालासियस, भारत सरकार की विदेश राज्य मंत्री माननीय श्रीमती पबित्रा मारग्रेटा, RIS अध्यक्ष राजदूत श्री संजय कुमार वर्मा, महानिदेशक प्रो. सचिन चतुर्वेदी, और अन्य प्रतिष्ठित अतिथि उपस्थित थे।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा, कुलसचिव डॉ. वीरेंद्र पॉल, डीन अकादमिक अफेयर्स प्रो. दिनेश कुमार, और इंडो-पैसिफिक अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. वी. एन. अत्री ने भाग लिया।

यह सहयोग न केवल विश्वविद्यालय की वैश्विक उपस्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि भारत के शैक्षणिक संस्थानों की अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भूमिका को भी और सशक्त बनाएगा।

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