इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन संपन्न

नई दिल्ली : इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक ०१-०२ अगस्त २०२४ को ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम में लोक की भूमिका’ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रथम महिला महाविद्यालय है।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो श्रीप्रकाश सिंह, मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की अध्यक्षा प्रो कुमुद शर्मा, वरिष्ठ आलोचक प्रो ओमप्रकाश सिंह, आईसीएचआर के उप निदेशक डॉ नौशाद अली उपस्थित रहे।

दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो श्रीप्रकाश सिंह ने कहा भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनेक महान सेनानियों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। आज उनके बलिदान और त्याग को स्मरण कर भारतीयता को जागृत करने की आवश्यकता है और इसमें लोक साहित्य बहुत अधिक माध्यम का कार्य करता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की अध्यक्षा प्रो कुमुद शर्मा ने कहा कि हिंदी के उपन्यासकारों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने उपन्यासों के जरिए भाग लिया। उन्होंने लोक की धड़कन को समझ कर अपने उपन्यासों की रचना की। इसके अलावा लोकगीतों के जरिए भी लोकमानस में स्वाधीनता की आग जली।

वरिष्ठ आलोचक प्रो ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में लोक का संघर्ष और भागीदारी के परिणाम स्वरूप आज हम यहां खड़े हैं कि भारत अपने ज्ञान अपने संस्कृति और अपने सौंदर्य से विश्व में अपनी अलग पहचान कायम करने में सक्षम हुआ है।

आईसीएचआर के उप निदेशक डॉ नौशाद अली ने कहा कि आईसीएचआर भारतीय लोक साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। इस तरह की संगोष्ठियों के द्वारा लोक साहित्य व्यापक रूप से आम जनता तक पहुंचता है।

राजीव रंजन ने कहा कि भारतीय लोक साहित्य इतना महान है कि यह चीन व अन्य देशों में भी उपलब्ध है और इस पर अध्ययन भी किया जाता है। भारतीय लोक सरल और सहज है जो कि सबके मन में अपनी जगह बना लेता है।

महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो पूनम कुमरिया ने कहा कि विश्व और मानवता की रहस्यमयी पहेली को समझने के लिए लोक साहित्य सबसे उपयुक्त माध्यम है। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में लोक साहित्य, लोक कला और लोक संस्कृति से प्रेरित होकर आम जन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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संगोष्ठी में देश विदेश से आये शोधार्थी, शिक्षक और अन्य प्रतिभागियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम और लोक की भूमिका पर शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया।

संगोष्ठी के प्रथम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी समावेश किया गया है जिसके अन्तर्गत लोक गायन और लोक नृत्यों की प्रस्तुति की गई तथा सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया गया। जिसमें प्रसिद्ध कजरी गायक डॉ मन्नू यादव, प्रसिद्ध रागनी गायक एवं पटेल लोक सांस्कृतिक संस्थान, ग्रेटर नोएडा के अध्यक्ष ब्रह्मपाल नागर और कठपुतली नृत्य की प्रस्तुति हेतु राजकुमार भाट समूह (दिल्ली) आदि कलाकारों नें उपस्थित प्रतिभागियों का अपनी प्रस्तुति से मन प्रफुल्लित कर दिया।

संगोष्ठी के दूसरे दिन समानान्तर सत्रों में अनेक शोधार्थियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किये।

संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो महेन्द्रपाल शर्मा ने की साथ ही विशिष्ट अतिथि एआईसीटीई में सीईओ बुद्धा चन्द्रशेखर, अंतरराष्ट्रीय अतिथि हर्ट्समेरे, यूके की उप-महापौर परवीन रानी, मुख्य वक्ता प्रों संतोषा कुमार और विशिष्ट वक्ता प्रो संध्या सिंह समापन सत्र में उपस्थित रहे।

बुद्धा चन्द्रशेखर ने कहा कि हमारे देश में भाषाओं की विविधता है परन्तु फिर भी हम सब में एकत्व का भाव है। आज हमें अपनी मातृभाषाओं और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। क्योंकि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हमारी मातृभाषा, संस्कृति और लोक साहित्य की विशेष भूमिका रही है।

प्रो संध्या सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमें अपने लोक साहित्य में समाहित ज्ञान का अध्ययन करना चाहिए। लोक में व्याप्त ज्ञान को जानना आज की प्रासंगिकता है।
प्रो संतोषा कुमार ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में लोक की भूमिका को जितना बताया जाये उतना कम है। लोक साहित्य ने सदैव भारतीय जनमानस को सरल और सहज ढंग से जागृत करने का कार्य किया है।

परवीन रानी ने कहा कि हिन्दी और भारतीय लोक साहित्य की विशिष्टता यह है कि आज भारत ही नहीं वरन् विदेशों में भी भारतीय लोक साहित्य को पढ़ा जा रहा है तथा इसे अपनाया भी जा रहा है।
प्रो. महेन्द्रपाल शर्मा ने कहा कि आज लोक साहित्य को हर क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त हो रहा है जो कि सुखद है। स्वाधीनता संग्राम को जानने और उससे प्रेरित होने के लिए लोक साहित्य का अध्ययन आवश्यक है।

प्रो पूनम कुमरिया ने कहा कि इन्द्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय का इस संगोष्ठी के माध्यम से लोक की प्रधानता और उसकी महानता को स्थापित करने का एक प्रयास है। आगामी समय में महाविद्यालय विभिन्न गतिविधियों के द्वारा लोक साहित्य के क्षेत्र में कार्य करेगा।

संगोष्ठी का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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