भारत के हितों की पुनर्संरचना हो I – कुलपति प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार सिन्हा
दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में अधिवक्ता परिषद की पहल, 300 से अधिक विशेषज्ञ और अधिवक्ता हुए शामिल
नई दिल्ली, 2 जून 2025: अधिवक्ता परिषद, दिल्ली प्रांत द्वारा “सिंधु जल संधि: पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में किया गया। इस संगोष्ठी में डीएनएलयू जबलपुर के कुलपति प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार सिन्हा मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए और भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु संधि पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं परिषद अध्यक्ष श्री संजय पोद्दार ने उद्घाटन भाषण देते हुए परिषद की ऐतिहासिक यात्रा और विधिक पेशेवरों के अखिल भारतीय संगठन के रूप में उसकी भूमिका का उल्लेख किया।

प्रो. सिन्हा ने अपने वक्तव्य में कहा कि जल संसाधनों के प्रबंधन में भारत को अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और सिंधु जल संधि को अब समकालीन वैश्विक और क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप देखा जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को संधि के तहत अपने हिस्से के जल का पूरा अधिकार है और पाकिस्तान के निराधार आरोपों को खारिज करते हुए, उन्होंने कहा कि भारत की नीतियां मानवीय सिद्धांतों पर आधारित हैं लेकिन राष्ट्रीय विकास से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
इस अवसर पर विदेश मंत्रालय के पूर्व विधिक सलाहकार प्रो. नरेंद्र सिंह ने संधि के विधिक व कूटनीतिक पहलुओं पर प्रकाश डाला और पाकिस्तान की बार-बार की गई अवहेलना का उल्लेख करते हुए भारत-पाक संबंधों में उत्पन्न तनाव पर चिंता जताई।
पूर्व सिंधु जल आयुक्त डॉ. डी.वी. थरेजा, जिन्होंने अनेक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स पर कार्य किया है, ने संधि के तकनीकी पक्षों पर विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने पुराने प्रावधानों पर पुनर्विचार की आवश्यकता को दोहराया।

अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (ABAP) के आयोजन सचिव श्री श्रीहरि बोरिकर ने पाकिस्तान द्वारा संधि की गलत व्याख्या के दुष्परिणामों को उजागर किया और भारत के जल अधिकारों की मजबूती से रक्षा करने की आवश्यकता जताई।
कार्यक्रम के अंत में एकमत से यह आह्वान किया गया कि सिंधु जल संधि का निष्पक्ष और राष्ट्रीय हितों के अनुरूप पुनर्मूल्यांकन किया जाए, जिससे न्यायसंगत और टिकाऊ जल वितरण सुनिश्चित हो सके।
यह संगोष्ठी जल सुरक्षा, विधिक नीतियों और राष्ट्रीय हितों के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण विमर्श का केंद्र बनी, जो आने वाले समय में नीति-निर्माण पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।