हकेवि में हुई विंटर स्कूल ऑन जियोस्पेशियल सांइस एंड टेक्नोलॉजी की शुरूआत

कुलपति प्रो टंकेश्वर कुमार ने कहा जियोस्पेशियल साइंस का अध्ययन हुआ महत्वपूर्ण

महेंद्रगढ़ : हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), में सोमवार को भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के नेशनल जियोस्पेशियल प्रोग्राम (एनजीपी) के अंतर्गत से विंटर स्कूल ऑन जियोस्पेशियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी की शुरुआत हुई है। इस प्रोग्राम का शुभारम्भ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो टंकेश्वर कुमार ने किया और इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा मंत्रालय एवं अल्पसंख्यक मामले के मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली से जुडे़ प्रो ताहिर हुसैन व मुख्य वक्ता के रूप में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट, आईआईटी रुड़की के विजीटिंग प्रोफेसर संजय कुमार जैन भी उपस्थित रहे।

विश्वविद्यालय कुलपति प्रो टंकेश्वर कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि समकालीन समय में जियोस्पेशियल साइंस, जोकि पृथ्वी और उसके जटिल प्रणालियों के अध्ययन से जुड़ा हुआ है, अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। यह उन्नत विज्ञान शहरी योजना, कृषि, वैश्विक जलवायु परिवर्तन के अध्ययन और अन्य कई क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कुलपति ने कहा कि इसके उपयोग से भूमि का समुचित उपयोग, संसाधन का अनुकूलन और पर्यावरणीय प्रभावों को समझने और उनके बचाव में मदद मिल रही है।

आयोजन में सम्मिलित मुख्य अतिथि प्रोफेसर ताहिर हुसैन ने कहा कि आज अधिकांश देशों में जियोस्पेशियल साइंस एवं तकनीक का उपयोग हो रहा है, और भारत इस क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में नजर आता है। इस तकनीक का उपयोग कृषि, जलवायु परिवर्तन, शहरी विकास और पर्यावरण संरक्षण में लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने अपने संबोधन में भारत को एक उदारवादी देश बताते हुए कहा कि देश के विकास में तकनीक का योगदान महत्वपूर्ण है और युवाओं को इसके लिए विशेष रूप से सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा।

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कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रोफेसर संजय कुमार जैन ने जियोस्पेशियल साइंस एवं तकनीक के महत्व पर प्रकाश डाला और हिमालयी ग्लेशियरों पर आधारित केस स्टडी का उल्लेख करते हुए जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों के प्रबंधन में इस तकनीक की प्रभावशीलता को प्रदर्शित किया। उन्होंने शहरी योजना, कृषि, और पर्यावरण संरक्षण में भू-स्थानिक तकनीक के बढ़ते उपयोग की बात की और इसे 21वीं सदी की चुनौतियों के समाधान के लिए अत्यंत आवश्यक बताया। इससे पूर्व में स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेस के डीन प्रोफेसर राजेश कुमार गुप्ता ने इस कार्यक्रम के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं और प्रतिभागियों के कौशल विकास में अहम योगदान देते हैं।

भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जितेन्द्र कुमार ने कार्यक्रम का परिचय देते हुए कहा कि यह कार्यक्रम ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग करके जियोस्पेशियल तकनीकों में ज्ञान और क्षमता निर्माण का एक प्रमुख पहल है। उन्होंने बताया कि यह प्रोग्राम आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो स्थायी विकास, गुड गर्वेनेंस और कार्यबल के विकास में योगदान देता है। इस सत्र का फोकस लेवल एक: मानक कार्यक्रम पर केंद्रित है, जिसमें लेक्चर, रिमोट सेंसिंग और डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग जैसे विषयों को कवर किया गया है।

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि डीएसटी समर्थित पहल के तहत, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय सहित 11 संस्थानों का देश भर में चयन किया गया। इसमें शिक्षकों से लेकर शोधकर्ताओं तक के प्रतिभागी शामिल हैं, जो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा से लेकर पूरे भारत में फैले भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कार्यक्रम के वित्तपोषण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को भी धन्यवाद दिया। विभाग के सहायक आचार्य डॉ खेराज ने कार्यक्रम का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। जबकि आयोजन के अंत में डॉ सी एम मीणा ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर डॉ दिनेश कुमार, डॉ जितेन्द्र कुमार, डॉ कमराज सिंधु, प्रोफेसर वीरपाल यादव, डॉ अशोक कुमार शर्मा, डॉ मोना शर्मा, डॉ अशोक जांगरा, संजीत कुमार, डॉ काजल कुमार मंडल और विभाग के शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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