राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में वीर सावरकर जयंती का भव्य आयोजन

Rajasthan / Ajmer: स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की जयंती राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो. आनंद भालेराव के नेतृत्व में भव्य और प्रेरणादायी रूप से मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत सावरकर जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित कर हुई, जिसमें मंचासीन अतिथियों सहित उपस्थित सभी ने श्रद्धांजलि दी।

डीन अकादमिक प्रो. डी.सी. शर्मा ने सावरकर जी के जीवन और योगदान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि “वीर सावरकर का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।” उन्होंने बताया कि सावरकर जी जातिवाद और अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। “हम पहले और अंत में भारतीय हैं” – यह सावरकर जी का जीवन मंत्र था। उन्होंने नासिक में पतित पावन मंदिर की स्थापना कर सामाजिक समरसता का संदेश दिया।

प्रो. शर्मा ने आगे बताया कि सावरकर ने “हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस” नामक पुस्तक लिखी, जो भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देती है। इस पुस्तक पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। उन्होंने 1857 की क्रांति को “भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम” घोषित किया और इसी को “स्वतंत्रता की पहली चिंगारी” बताया।

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उन्होंने बताया कि क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते सावरकर को दो बार आजीवन कारावास की सजा दी गई और उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल में भेजा गया, जहाँ उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं। इसके बावजूद उनकी राष्ट्रभक्ति डगमगाई नहीं।

अपने उद्बोधन में प्रो. शर्मा ने कुलपति प्रो. आनंद भालेराव का धन्यवाद देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में महापुरुषों की जयंती मनाने की यह परंपरा छात्रों में राष्ट्रप्रेम और सांस्कृतिक चेतना जगाने का कार्य करेगी। उन्होंने यह भी बताया कि सावरकर जी हिंदू समाज को संगठित करने और सांस्कृतिक राष्ट्र के विचार के प्रबल समर्थक थे। रत्नागिरी हिंदू सभा के निर्माण से लेकर 1937 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बनने तक, सावरकर जी का राष्ट्र निर्माण में विशेष योगदान रहा।

इस अवसर पर कुलसचिव अमरदीप शर्मा, वित्त अधिकारी प्रदीप अग्रवाल, विश्वविद्यालय के डीन, शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक अधिकारी, शिक्षक, कर्मचारी और छात्रगण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जनसंपर्क अधिकारी अनुराधा मित्तल ने किया। कार्यक्रम के अंत में सभी ने सावरकर जी को पुष्पांजलि अर्पित कर राष्ट्रप्रेम का संकल्प दोहराया।

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