हिंदी विश्‍वविद्यालय में ‘शिक्षा में रामत्व एवं अमृतकाल में विजन फॉर विकसित भारत’ पर हुई कार्यशाला

भारत की शिक्षा राम के चरित्र व त्याग से सम्पन्न होनी चाहिए – कुलपति प्रो के के सिंह

वर्धा : भारत की ज्ञान परंपरा को रामत्‍व के साथ जोड़ना चाहिए। राम के व्‍यक्तित्‍व और गुणों से सम्‍पन्न शिक्षा ही रामत्‍व है। जीवन को सफल बनाने के सारे गुण राम में उपस्थित हैं। भारत की शिक्षा में राम के चरित्र, शिक्षा, त्‍याग और व्‍यवहारिकता इन गुणों से सम्‍पन्‍न होनी चाहिए। यह विचार कुलपति प्रो कृष्‍ण कुमार सिंह ने व्यक्त किए। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल-युवा आयाम, नागपुर के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित ‘शिक्षा में रामत्व एवं अमृतकाल में विजन फॉर विकसित भारत’ विषय पर सोमवार, 6 मई को एक दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो सिंह बोल रहे थे।

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मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी आर शंकरानंद ने मार्गदर्शन करते हुए कहा कि शिक्षा में कर्म के माध्‍यम से राम प्रतिष्ठित होने चाहिए। हमें ज्ञान शक्‍ति, अर्थ शक्‍ति और सैन्‍य शक्ति से विकसित भारत बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। विकसित भारत का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए शिक्षा में गुणवत्ता, सभी के लिए आसान शिक्षा, रामत्‍व, अनुसंधान और कौशल विकास इन पंच सूत्र पर काम करना चाहिए। उन्‍होंने स्‍वाधीनता का इतिहास से लेकर वर्तमान परिदृश्‍य पर भी चर्चा की। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया, हिंदी साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष, संयोजक प्रो अवधेश कुमार एवं भारतीय शिक्षण मंडल के विदर्भ प्रांत मंत्री राकेश सिंगरु मंचासीन थे।

इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से ‘शिक्षा में रामत्व एवं अमृतकाल में विजन फॉर विकसित भारत’ विषय पर आयोजित शोध-पत्र लेखन प्रतियोगिता के पोस्‍टर का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।

कार्यक्रम का संचालन शिक्षा विभाग के सहायक प्रोफेसर तथा कार्यशाला के सह-संयोजक डॉ योगेन्‍द्र बाबू ने किया तथा डॉ अभिषेक त्रिपाठी ने आभार माना। राष्‍ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अध्यापक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी व शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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