काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
‘हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक-सामाजिक विरासत: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी : हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक-सामाजिक विरासत: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी कृषि प्रेक्षागृह में हुआ। इस समारोह की शुरुआत महामना मदन मोहन मालवीय जी की मूर्त्ति पर पुष्पांजलि अर्पित करने और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इसके बाद कुलगीत का गायन हुआ और अतिथियों का स्वागत तुलसी के पौधे, मोमेंटों और अंगवस्त्र से किया गया।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में कुलपति प्रोफेसर वशिष्ठ द्विवेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि राष्ट्रवादी कवियों ने भारतीय संस्कृति को सहेजने और उसके गौरव को पुनः स्थापित करने का कार्य किया। उन्होंने भारत के सांस्कृतिक प्रतीकों, इतिहास और भूगोल को अपनी कविताओं में प्रमुखता दी। विशेष रूप से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, दिनकर, और सुभद्राकुमारी चौहान जैसी हस्तियों की रचनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने राष्ट्रवादी कविता की परंपरा की विस्तार से व्याख्या की।
बीज वक्तव्य में प्रोफेसर राजेश लाल मेहरा ने कहा:
“भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में पहचाना जाता है। यदि संस्कृति को निकाल दिया जाए तो राष्ट्र अधूरा रह जाता है। हमें भारतीय संस्कृति की शास्त्रीय और वाचिक धारा का गहन अध्ययन करना चाहिए। यह संस्कृति ही भारतीय राष्ट्र की पहचान है।” उन्होंने भारतीय संस्कृति के महत्व को विभिन्न वैदिक श्लोकों और लोकगीतों के माध्यम से स्पष्ट किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रान्त प्रचारक श्री रमेश कुमार ने साहित्यकारों के दायित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्यकारों को राष्ट्र और संस्कृति के मुद्दों को अपने साहित्य का हिस्सा बनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि राष्ट्र की संस्कृति को बचाने का कार्य केवल साहित्यकारों द्वारा ही संभव है।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर एस एन संखवार (निदेशक, IMS, BHU) ने संगोष्ठी के वैचारिक महत्त्व पर जोर दिया और कहा कि हमें अपनी सांस्कृतिक धारा को समझने के साथ-साथ उसे अपने आचरण में भी उतारना चाहिए।
इस सत्र की अध्यक्षता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला संकाय प्रमुख प्रोफेसर मायाशंकर पाण्डेय ने की, जिन्होंने शोधार्थियों से आग्रह किया कि वे अपनी राष्ट्रवादी कविता को उत्तरऔपनिवेशिक दृष्टिकोण से देखें और विवेकानन्द, गांधी तथा दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा को अपनी चर्चाओं में शामिल करें।
प्रथम अकादमिक सत्र में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा’ पर चर्चा की गई, जिसमें डॉ. प्रमोद श्रीवास्तव ने भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक एकीकरण की प्राचीन परंपरा को समझाया। इसके बाद, डॉ. शशिकला जायसवाल ने 1857 की क्रांति पर आधारित साहित्यिक काव्य की भूमिका पर चर्चा की।
द्वितीय अकादमिक सत्र में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिन्दी कविता’ पर विशिष्ट वक्ताओं ने अपने विचार रखे, जिसमें प्रोफेसर सुमन जैन और डॉ. माधुरी यादव प्रमुख थे।
सांस्कृतिक संध्या के दौरान प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका डॉ. सुचरिता गुप्ता और ग़ज़ल गायक डॉ. दुर्गेश उपाध्याय ने अपनी प्रस्तुतियों से माहौल को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया।
इस संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी साहित्य में राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों और सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारतीय साहित्य में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण पक्षों पर मंथन करता है।