काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के विद्यार्थीयो ने किया कविता पाठ
ऐसा नहीं था, तब विज्ञान नहीं था, बस हमें उसका ज्ञान नहीं था”
वाराणसी : वैज्ञानिकों को कविताये लिखनी चाहिए क्योकि कविताये हमारे जीवन को परिलिक्षित करती है, और एक वैज्ञानिक के उत्कृष्ट शोध को कविता के माध्यम से भी लोगों तक पहुँचना चाहिए, आज यह बात हिन्दी प्रकाशन समिति द्वारा आयोजित कविता पाठ प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सदस्य और जैव प्रोद्योगिकी के समन्वयक प्रोफेसर प्रत्युष शुक्ला नें भौतिकी विभाग के एस एन बोस सभागार में कही। हिन्दी प्रकाशन समिति (भौतिकी प्रकोष्ठ) द्वारा मनाये जा रहे हिन्दी सप्ताह की तृतीय कड़ी में विज्ञान संस्थान के विद्यार्थीयो ने कविता पाठ प्रतियोगिता में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
इस प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने एक से बढ़कर एक कविताये सुनायी। प्रतिभागियों ने “उठो कुछ करो ऐसा की कायनात बदल जाये, कोई कटे पैरों से भीख माँग रहा है और कोई कटे पैरो से मेडल जीत रहा है” मैं हंसती हूँ पर बाहर से, उर में मैं मन को मनाती हूँ, झलकूं मैं उस शशि सी सुंदर, अंदर के दाग छिपाती हूँ। पलंग तले उस बक्से में, स्वारथ के भाव छुपाती हूँ, कौतूहल की बस्ती में, अपना आनंद रचाती हूँ” “मैं उन दिनों का साक्षी हूँ, जब सच्चाई की नीति पर विज्ञान बन रहा था” “चलो अब तुमको विज्ञान दिखाते है” ” “हाँ विज्ञान की अलग ही परिभाषा है” जैसी कई कविताये सुनायी।
प्रो प्रत्युष शुक्ला और डॉ राहुल कुमार सिंह ने निर्णायक मंडल की भूमिका का निर्वहन किया। इस प्रतियोगिता के विजेताओं को 14 सितंबर हिन्दी दिवस के कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ चंद्र शेखर पति त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन समिति की सदस्या डॉ ऋचा ने किया।