हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में बनेगा ‘मियावाकी वन‘
पर्यावरण संरक्षण की पहलः
2.5 एकड़ में विकसित होगा मियावाकी वन
महेंद्रगढ़ : हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि) ने अपने परिसर में जिला वन विभाग द्वारा मियावाकी वन विकसित करने के उद्देश्य से एक महत्वाकांक्षी पर्यावरण हितैषी परियोजना के शुभारंभ की घोषणा की है। जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित मियावाकी पद्धति में कम समय में घने, देशी वनों का निर्माण किया जाता है। यह तकनीक विभिन्न देशी प्रजातियों को एक साथ सघन रूप से रोपकर तेजी से विकास और उच्च जैव विविधता को बढ़ावा देती है। इसका परिणाम एक आत्मनिर्भर, कम रखरखाव वाला वन है जो पारंपरिक जंगलों की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ सकता है और 30 गुना अधिक घना हो सकता है।
विश्वविद्यालय कुलपति प्रो टंकेश्वर कुमार ने परियोजना के प्रति उत्साह व्यक्त करते हुए कहा कि मियावाकी वन लगाने की पहल सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के हमारे दृष्टिकोण के साथ पूरी तरह से मेल खाती है। हम अपने परिसर को हरित और पारिस्थितिक बहाली के लिए एक मॉडल बनते देखकर उत्साहित हैं। उन्होंने इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय का चयन करने के लिए जिला वन विभाग के प्रति भी आभार व्यक्त किया।
कुलपति ने कहा कि यह वन विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए एक जीवंत प्रयोगशाला के रूप में काम करेगा, जो पारिस्थितिकी, वनस्पति विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान में व्यावहारिक शिक्षण का अनुभव प्रदान करेगा। परियोजना का उद्देश्य स्थानीय समुदायों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना और पौधारोपण गतिविधियों में भागीदारी को प्रोत्साहित करना है। मियावाकी वन परिसर के परिदृश्य को निखारने, विद्यार्थियों, कर्मचारियों और आगंतुकों के लिए शांत वातावरण प्रदान करने, वायु गुणवत्ता में सुधार करने और मनोरंजक स्थान प्रदान करने में मददगार साबित होगा।
जिला वन अधिकारी राज कुमार ने बताया कि वन विभाग आगामी मानसून अवधि में पौधारोपण गतिविधियां शुरू कर रहा है और हकेवि में बनने वाला मियावाकी जंगल पूरे जिले के लिए एक मॉडल होगा और भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी मियावाकी वन विकसित किए जाएंगे। इसके अंतर्गत लगभग 10000 पौधे लगाए जाएंगे। विश्वविद्यालय में ग्रीन कैंपस क्लीन कैंपस क्लब के समन्वयक प्रो सुरेंद्र सिंह ने बताया कि यह पहल स्थिरता और पारिस्थितिक बहाली के लिए विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के निर्देशानुसार, सभी शिक्षण संस्थानों को हरित आवरण बढ़ाने की आवश्यकता है और यह पहल उसी का हिस्सा है।