विदर्भ के कोलाम और माड़िया-गोंड समुदायों पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय करेगा शोध

जैव-सांस्कृतिक देशज ज्ञान को संरक्षित करने की दिशा में ऐतिहासिक पहल

वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग के संकाय सदस्य डॉ निशीथ राय (मुख्य शोध परियोजना अन्वेषणकर्ता) के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति प्रदान की है। यह परियोजना विदर्भ क्षेत्र के, विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह कोलाम (यवतमाल) और माड़िया-गोंड (गढ़चिरौली) समुदायों के पारंपरिक देशज ज्ञान प्रणालियों के एकीकरण और सत्यापन पर केंद्रित हैं।

‘इंटीग्रेशन एंड वैलिडेशन ऑफ इंडिजिनस नॉलेज सिस्टम्स: ए बायो-कल्चरल एनालिसिस ऑफ एंथो-मेडिसिन, एंथो-प्लांट पैथोलॉजी एंड एंथो-वेटरिनरी प्रैक्टिसेस अमंग कोलम (यावतमल) एंड माडिया-गोंड (गडचिरोली) पीवीटीजीएस ऑफ विदर्भ, महाराष्ट्र टोवर्ड्स सस्टेनेबल डिवेलपमेंट’ शीर्षक वाली इस परियोजना का मुख्य लक्ष्य जनजाति समुदायों के पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करना और उसे सतत विकास से जोड़ना है। इसमें एथ्नो-मेडिसिन (पारंपरिक चिकित्सा), एथ्नो-प्लांट पैथोलॉजी (पौधों की बीमारियों का स्थानीय उपचार) और एथ्नो-वेटरनरी (पशु चिकित्सा) पद्धतियों का गहन अध्ययन किया जाएगा। यह शोध न केवल देशज ज्ञान को संरक्षित करेगा, बल्कि आधुनिक विज्ञान के साथ उनके समन्वय से नई नीतियों के निर्माण में भी मदद करेगा।

Advertisement

डॉ निशीथ राय (मुख्य शोधकर्ता) के नेतृत्व में यह परियोजना 24 माह में पूरी की जाएगी। इसमें गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के डॉ मनोज कुमार राय, महात्मा गांधी आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉ दत्तात्रेय दुर्गादास सरवदे और मानवविज्ञान विभाग के डॉ वीरेंद्र प्रताप यादव सह-शोधकर्ता के रूप में शामिल हैं। यह टीम मानवविज्ञान, आयुर्वेद और सामाजिक विज्ञान के अंतर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण से कार्य करेगी।

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के इस निर्णय को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ तथा ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’की भावना से जोड़ते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो कुमुद शर्मा ने कहा, “यह परियोजना देशज ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सेतु बनेगी। विशेष रूप से कमजोर समुदायों की देशज ज्ञान परंपराएं हमारी सामूहिक विरासत हैं, जिन्हें संरक्षित करना राष्ट्रीय प्राथमिकता है।”

इस शोध से कोलाम और माड़िया-गोंड समुदायों की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक मान्यता मिलने की उम्मीद है। साथ ही, इन पद्धतियों के वैज्ञानिक सत्यापन से स्थानीय स्वास्थ्य, कृषि और पशुपालन क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं। डॉ निशीथ राय ने बताया, “हमारा लक्ष्य देशज ज्ञान को डिजिटल डेटाबेस में संग्रहित करना और उन्हें नीति-निर्माण से जोड़ना है।”यह परियोजना न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के जनजाति समुदायों के लिए मिसाल बनेगी। भासाविअप का यह निर्णय सांस्कृतिक विविधता और सतत विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की यह सफलता हिंदी माध्यम में गुणवत्तापूर्ण शोध के नए अध्याय का सूत्रपात करेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page