काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्वामी कृष्णकांत जी से छात्रों ने ‘आत्मप्रबंधन’ की कला सीखी
वाराणसी : चिकित्सा विज्ञान संस्थान के छात्रों ने ‘ शक्ति, शांति और स्वास्थ्य के लिए आत्मप्रबंधन’ विषय पर स्वामी कृष्णकांत जी से स्वप्रबंधन की कला सीखी। स्वामी कृष्णकांत जी ने रावण और राम की तुलना करते हुए जीवन के कई पहलुओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भौतिक साधनों से असुरक्षा बढ़ती है और असुरक्षा से असंतोष और असंतोष से दुःख।

वे आगे कहते हैं कि लम्बी आयु से ही सुख नहीं मिलता। परिवार की बात करें तो रावण का एक लाख पुत सवा लाख नाती था फिर भी वह सुखी नहीं था। हमें अपने अतीत के ग्रंथों से सीखना चाहिए, जिस देश में उपनिषद हो, गीता हो, उदात्त साहित्यिक परम्परा हो उस देश का वासी डिप्रेशन में जाता है या आत्म हत्या करता है इसका मतलब हम अपने जड़ों से कट गये हैं। हम देखें कि शक्ति के मामले में भी रावण अद्वितीय था, फिर भी वह निराश था। जीवन में खुश रहने का सूत्र वाक्य है कि नैराश्य, उदासी, हताशा जब आपको परेशान करने लगे तब हमेशा शक्तिशाली खुद को मानिए और बुद्धिमान भगवान को मानिए। हम लोग हमेशा परिस्थिति बदलने का प्रयास करते हैं जबकि अधिकांश समस्या का जड़ मन: स्थिति में होता है मन: स्थिति बदलने से से ही अधिकांश समस्या खत्म होती है। जीवन के संग्राम में विजेता वहीं होता है जिसकी मन: स्थिति स्पष्ट हो, मन: स्थिति सही है तो परिस्थिति को नियंत्रण में रख सकते हैं।
इस कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य प्रोफ़ेसर विजयनाथ मिश्र सर ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो एस एन शंखवार सर ने किया। इस अवसर पर हिंदी विभाग के प्रोफेसर प्रकाश शुक्ल के अलावा न्यूरोलॉजी विभाग से प्रो रामेश्वर चौरसिया, जंतुविज्ञान विभाग से प्रो ज्ञानेश्वर चौबे, ई एन टी विभाग से प्रो विश्वभर सिंह आदि चिकित्सकों के साथ सैकड़ों शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित थे।