भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन
उत्तर प्रदेश / बरेली : भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के दूसरे दिन अनेक खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया इसके साथ ही स्थापना दिवस अभिभाषण डा. तरूण श्रीधर पूर्व आई.ए.एस.(सेवानिवृत्त) एवं पूर्व सचिव, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली तथा महानिदेशक, इण्डियन चैम्बर ऑफ फूड एण्ड एग्रीकल्चर (आई.सी.एफ.ए.) नई दिल्ली द्वारा दिया गया।
अपने भाषण में मुख्य अतिथि डा. तरूण श्रीधर ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध समस्या के समाधान के लिए वन हेल्थ कार्यक्रम के उचित कार्यान्वयन को प्राथमिकता दी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध के उभरते मुद्दों के लिए पशुधन क्षेत्र को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। पशुचिकित्सक न केवल कुशल चिकित्सा पेशेवर हैं, बल्कि दिव्य अंतर्दृष्टि के संचारक भी हैं जो बेजुबान जानवरों के दर्द और भाषा को समझते हैं।
भारत में पशु स्वास्थ्य की वैज्ञानिक विरासत, और यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया है कि पशु स्वास्थ्य का अर्थ मानव स्वास्थ्य है। जिस प्रकार मांसपेशियों को मजबूत होने के लिए भोजन और व्यायाम की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मस्तिष्क को विकसित होने के लिए सही पोषक तत्वों और गतिविधि की आवश्यकता होती है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति को विशेष रूप से पशुधन अनुभाग से आने वाले भोजन के सभी विकल्पों का पता लगाना चाहिए। हम धार्मिक होने के साथ-साथ तर्कसंगत भी होंगे तभी सर्वांगीण विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे।
उन्होंने महात्मा गांधी के मोनोग्राफ “स्वास्थ्य की कुंजी (1942)” का उल्लेख किया जहाँ महात्मा गांधी ने लिखे “अंडे को आम आदमी मांस भोजन के रूप में मानता है। वास्तव में वे एक बाँझ अंडा है जो कभी भी चूजे में विकसित नहीं होता है। अतः जो दूध ले सकता है उसे निष्फल अंडे लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मौजूदा मानव संक्रामक रोगों में से 60 प्रतिशत जूनोटिक हैं यानी वे सीधे संपर्क के माध्यम से या भोजन, पानी और पर्यावरण के माध्यम से जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं। उभरते हुए संक्रामक मानव रोगों में से 75 प्रतिशत की उत्पत्ति पशु से होती है। मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सबसे प्रभावी और आर्थिक दृष्टिकोण जूनोटिक रोगजनकों को उनके पशु स्रोत पर नियंत्रित करना है। इसलिए, आज एक पशुचिकित्सक जानवरों और लोगों दोनों के स्वास्थ्य की रक्षा करता है। स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के अलावा, जानवरों की हर प्रजाति की कल्याण संबंधी जरूरतें भी उनका क्षेत्र हैं। इसके अलावा, पशुपालन के प्रबंधक के रूप में, वह ग्रामीण आजीविका और अर्थव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, खाद्य सुरक्षा और इसलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि पशु स्वास्थ्य की उचित कवरेज के लिए पशु चिकित्सकों की संख्या बढ़ाना समय की मांग है।
इससे पूर्व संस्थान के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त ने स्थापना दिवस पर वैज्ञानिक तकनीकी तथा कर्मचारियों व छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि इस गौरवमयी संस्थान को एशिया के ऐतिहासिक संस्थान बनाने में हमारे पूर्व निदेशकों के साथ 6 ब्रिटिश निदेकशकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। संस्थान की उपलब्धियों के बारे में बताते हुये डा. त्रिवेणी दत्त ने कहा कि संस्थान को 1983 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला। संस्थान में 6 संयुक्त निदेशालय, 2 क्षेत्रीय प्रमुख केन्द्र 19 शोध विभाग, 28 अनुभाग, 6 पशुधन अनुभाग तथा जर्म प्लाज्म केन्द्र द्वारा देश के पशुधन की सेवा की जा रही है। डा. दत्त ने कहा संस्थान द्वारा 100 से अधिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं जिनमें से 49 महत्वपूर्ण टीकों को 60 वाणिज्यक घरानों को हस्तांतरित किया गया है इसके अतिरिक्त संस्थान में 166 बाहृय वित्त पोषित शोध परियोजनायें चलाई जा रही हैं। संस्थान की मानव संसाधन विकास मंे भी महत्वपूर्ण भूमिका है जिसके अन्तर्गत इस संस्थान के 589 एल्मुनाई देश के 29 राज्य कृषि तथा पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में कार्य कर अपनी सेवायें दे रहे हैं।
कार्यक्रम का संचालन पशुजन स्वास्थ्य विभाग के वैज्ञानिक डा. सुमन कुमार द्वारा दिया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन पीएमई सेल प्रभारी डा. जी. साई कुमार द्वारा दिया गया।