कल्चरल नैशनलिज़म ऑफ भारत ‘ पर डॉ. ओम उपाध्याय का विशिष्ट व्याख्यान आयोजित ।

राजस्थान / अजमेर :सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, साझा परंपराओं, आध्यात्मिक लोकाचार और ऐतिहासिक निरंतरता के कारण राजनीतिक राष्ट्रवाद से अलग है, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भूमिका भारत में विविध भाषाई, धार्मिक और क्षेत्रीय पहचानों के बीच एकता को बढ़ावा देने में सक्षम बनाती है,” यह बात भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR), नई दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ. ओम जी उपाध्याय ने राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में  ‘कल्चरल नैशनलिज़म ऑफ भारत ‘विषय पर आयोजित विशिष्टव्याख्यान मे मुख्य वक्ता के रूप मे कही।

डॉ. उपाध्याय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ऐतिहासिक कथाएँ किस तरह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को आकार देती हैं। उन्होंने महत्वपूर्ण अवधियों और व्यक्तित्वों पर प्रकाश डाला, जहाँ उन्होंने उल्लेख किया कि गुप्त काल सांस्कृतिक एकीकरण और बौद्धिक प्रगति का स्वर्ण युग था, भक्ति आंदोलन, जिसने भक्ति और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के माध्यम से सामाजिक और क्षेत्रीय विभाजनों से परे लोगों को एकजुट किया। इतना ही नहीं उन्होंने स्वामी विवेकानंद के दर्शन, कन्याकुमारी में उनके ध्यान का उल्लेख किया, जो दक्षिण में माँ कन्याकुमारी और उत्तर में भगवान शिव के बीच संबंध का प्रतीक है और धर्म और राष्ट्र की एकता के विचार ने राष्ट्रवाद को भक्ति और संस्कृति के बराबर बताया।

Special lecture by Dr. Om Upadhyay on 'Cultural Nationalism of India' was organised.

उन्होंने भारत माता के विचार के माध्यम से सांस्कृतिक गौरव को जगाने के लिए बंकिम चंद्र चटर्जी के “आनंदमठ” जैसे कई साहित्यिक ग्रंथों का भी उल्लेख किया। उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृतियों, विशेष रूप से कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस और थाईलैंड जैसे देशों में रामायण के प्रभाव का भी पता लगाया। उन्होंने दक्षिण कोरिया के भारत से संबंधों का उल्लेख किया, जिसमें रानी हियो ह्वांग-ओक ने अयोध्या से अपने वंश का पता लगाया। अंगकोर वाट कंबोडिया में भारत की सांस्कृतिक पहुंच का एक प्रमाण है। उन्होंने भारतीय बौद्धिक परंपराओं के खुलेपन की भी तुलना की, इसकी तुलना यूरोप द्वारा गैलीलियो और ब्रूनो जैसे लोगों के दमन से की। साथ ही प्राचीन भारत में महिलाओं की भूमिका के विषय मे रानी दुर्गावती से लेकर रानी लक्ष्मीबाई तक सभी युगों की महिलाओं का भी उल्लेख किया।

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डॉ. उपाध्याय ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और उसका प्रसार करने के लिए सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने भारत के विविध इतिहास को दस्तावेजित करने और बढ़ावा देने में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद जैसे संगठनों की भूमिका को मजबूत करने, एनसीईआरटी और सीबीएसई जैसे शैक्षिक बोर्डों के साथ मिलकर पाठ्यक्रम में समृद्ध सांस्कृतिक सामग्री को एकीकृत करने और विशेष रूप से आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में कम ज्ञात परंपराओं और इतिहास के अनुसंधान और दस्तावेजीकरण को प्रोत्साहित करने की बात कही।

Special lecture by Dr. Om Upadhyay on 'Cultural Nationalism of India' was organised.

कार्यक्रम का प्रारम्भ राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आनंद भालेराव के वक्तव्य से हुआ जिसमे उन्होंने वर्तमान के वैश्वीकृत संदर्भ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को समझने के महत्व, मातृभाषा के महत्व और राष्ट्रवाद के विकसित विचारों पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में शिक्षकों, शोधार्थी और विद्यार्थियों ने भाग लिया । सत्र समापन के अवसर पर उपस्थित लोगों ने प्राचीन भारत में समावेश की प्रासंगिकता और इतिहास के प्राथमिक स्रोतों के प्रसार के लिए आईसीएचआर द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में व्यावहारिक प्रश्न पूछे। जवाब मे डॉ उपाध्याय ने बताया कि कैसे उनके संगठन ने विभिन्न अवधियों के लिए भारतीय इतिहास के प्राथमिक स्रोतों की एक व्यापक पुस्तक सफलतापूर्वक संकलित की है।

Special lecture by Dr. Om Upadhyay on 'Cultural Nationalism of India' was organised.

अंत में अकादमिक नेतृत्व विकास कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. सी.सी. मंडल ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा डॉ ओम उपाध्याय की बहुमूल्य अंतर्दृष्टि तथा इस सफल कार्यक्रम के आयोजन में शामिल सभी लोगो के प्रयासों की सराहना की।

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